Me

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Namste !

Friday, September 19, 2008

मैं भागता गया एक चरम गति से पहाड़ के शिखर तक जबतक मेरी साँसों में से धुआं नहीं निकलने लगा। वहां पर मैंने देखा की सारी दुनिया में प्रेम पाने के लिए जानवर इच्छुक है पर प्रेम की लिए ख़ुद का समर्पण करने में बहुत लोग असमर्थ होते हैं। दिमाग कहता है दूसरे पर ऐतबार मत करो, दिल प्रेम करना चाहता है - दिमाग कहता है धोका मिलेगा। इस कशमकश में हम अपनों से भी दूर हो जाते हैं।

मुझे एक साँप दिखा जिससे मैंने पूछा तू किस्से प्रेम करता है? उसने बोला मैं विष से प्रेम करता हूँ। मैंने पूछा क्या विष तेरी जान नही ले लेगा? उसने कहा विष पी कर ही तो मेरे अकेलेपन की प्यास बुझती है। जब मैं अकेला परेशान हो जाता हूँ, जब मेरे से बात करने को कोई नहीं होता और हर तरफ़ सन्नाटा दीखता है, तो मैं थोड़ा सा अपना विष पी लेता हूँ जिससे मुझे सुरूर आ जाता है। फ़िर मैं अपनी कल्पनाओं में खो जाता हूँ जहा पर सिर्फ़ मेरा साम्राज्य होता है, जहाँ पर मुझे किसी का भय नहीं होता, जिस धरती पर सारे जीव एक रास लीला में आनंदित हो कर नाच रहे होते हैं, मैं वहीं कहीं किसी पेड के पीछे से उनको हर्ष में देख कर खुश होता हूँ।

मनुष्य अकेलेपन से घबराता है और प्रेम को तलाशता है पर सिर्फ़ कामना करने से उल्लास नही मिलता, उसके लिए यत्न करने होते हैं। पहला यत्न की आकान्शाओं की बलि देनी पड़ती है और प्रियतम को किसी निर्णय की दृष्टि से नही आँका जाना चाहिए। प्रेम करने के लिए ह्रदय को सौंदर्य के आकर्षण से भी पृथक करना पड़ सकता है, जो की बहुत लोगो के लिए मुश्किल होता है। सौंदर्य कभी कभी एक छलावा होता है जो अपने आगोश में ले कर यातना भी दे सकता है, इसलिए सिर्फ़ मन का विश्लेषण करे जब प्रेम करें।

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